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पाठान्‍तर

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  • Pages:107 pages
  • Edition Year:2008
  • Publisher:Parikalpana Prakashan
  • Language:Hindi
  • ISBN:9788189760342


Book Description

विष्णु खरे की कविता में कहीं गहन विक्षोभ के रूप में तो कहीं ठण्डी, आभासी “तटस्थता” के रूप में एक नैतिक विकलता मौजूद है, लेकिन जटिल प्रश्नों का सहज समाधान प्रस्तुत करने के बजाय वहाँ विवेक को सक्रिय करने वाली प्रश्नाकुलता ही तार्किक निष्पत्ति के रूप में सामने आती है। इस रूप में विष्णु खरे की कविता निरन्तर यात्रारत रहती है। शब्दों के गहरे अर्थ में, विष्णु खरे की कविता आशा, मनुष्य और भविष्य के पक्ष में, जीवन, सृजन और संघर्ष के पक्ष में खड़ी कविता है। विष्णु खरे एक द्वन्द्वचेतस कवि हैं। उनकी कविता में परम्परा और परिवर्तन का द्वन्द्व है जिसमें परिवर्तन का पक्ष प्रधान है, सन्देह और विश्वास का द्वन्द्व है जिसमें विश्वास का पक्ष प्रधान है। विष्णु खरे जीवन में चीज़ों के इर्दगिर्द रहस्य रचने और हर तरह के ‘फेटिशिज़्म’ का विरोध करते हैं, लेकिन तरल, पारभासी यथार्थ को स्वीकारने में भी नहीं हिचकिचाते। इस शताब्दी के बीत जाने के बाद भी विष्णु खरे की कविता को हमारे समय के आम आदमी की नैतिक विकलता, जिजीविषा और युयुत्सा की कविता के रूप में न सिर्फ़ याद रखा जायेगा बल्कि विशेष महत्व दिया जायेगा।




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Vishnu Khare

हिन्दी कवि

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