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मुझे तुम वहाँ ढूँढो
Book Details
- Choose Book Type:
- Pages:172 pages
- Edition Year:2025
- Publisher:Parikalpana Prakashan
- Language:Hindi
- ISBN:9789394117198
Book Description
रंजीत वर्मा हिन्दी कविता की दुनिया के एक
बेहद ज़िम्मेदार नागरिक हैं जिनकी प्रतिबद्धता अकुण्ठ रही है, दृष्टि
सुसंगत रही है और जन-सरोकार विश्वसनीय रहे हैं। प्रतिक्रियावादी पुनरुत्थान, विपर्यय
और हिन्दुत्ववादी फ़ासिस्ट उभार के इस अँधेरे समय में निर्भीक-निष्कम्प प्रतिरोध
के जो स्वर हिन्दी कविता के परिदृश्य पर लगातार उपस्थित रहे हैं, उनमें
सबसे अगली कतार में निस्संकोच रंजीत वर्मा का नाम लिया जा सकता है।
रंजीत वर्मा शब्द के गहरे अर्थों में
राजनीतिक कविता के सिद्ध कवि हैं। उनकी कविताओं में राजनीतिक चिन्ताएँ, सवाल, सरोकार
मुखर होकर आते हैं, कई बार वक्तव्यों के रूप में आते हैं, लेकिन
उनकी सहजबयानी कलाहीन सपाटबयानी नहीं होती। उनकी राजनीतिक मुखरता कला की शर्तों पर
नहीं होती। इन राजनीतिक कविताओं की अपनी अलग कला है। कहा जा सकता है कि राजनीतिक
कविताओं की कला को रंजीत वर्मा ने अपने ढंग से साधा है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि
उनकी कविताओं की राजनीतिक मुखरता राजनीतिक वाचालता नहीं है। पक्षधरता के आवेग के
बावजूद उनमें शब्दस्फीति नहीं है।
उनका नया संकलन ‘मुझे
तुम वहाँ ढूँढ़ो’ एक बार फिर इस बात को पुष्ट करता है कि रंजीत
वर्मा की विचारधारात्मक-राजनीतिक अवस्थिति उनकी कविताओं में एकदम स्पष्ट है। वह
ज़मीन के आदमी हैं और भारतीय समाज, राजनीति और अर्थतन्त्र के उस ताने-बाने को
बख़ूबी समझते हैं जिसने इक्कीसवीं सदी के फ़ासीवाद के नये भारतीय संस्करण के पनपने
की ज़मीन मुहैया करायी है। इस संकलन की कविताएँ इस तथ्य की प्रामाणिक इन्दराजी करती
हैं।
आज जिस समय कविता का ऐतिहासिक दायित्व है कि वह जनसमुदाय से फ़ासिस्ट ताक़तों के विरुद्ध उठ खड़ा होने की बात करती, उस समय नकली सन्त का अराजनीतिक चोंगा पहने कई कवि करुणा, शान्ति, अहिंसा आदि का नाट्य रच रहे हैं और कई अन्य कला का बारीक़ सूत कात रहे हैं या प्रेम की अविरल गंगा बहा रहे हैं। रंजीत वर्मा इस कलात्मक अराजनीतिक मायानगरी से बाहर ख़ेमा गाड़े हुए प्रतिबद्ध कविता का एक नया व्याकरण, काव्यात्मक कहन की एक नयी शैली ईजाद कर रहे हैं। उनकी कविताएँ इस अँधेरे समय के तमाम स्याह पहलुओं की इन्दराजी तो करती हैं लेकिन कहीं भी हताशा या पराजयबोध नहीं जगातीं। उनमें हालात से टकराने और उन्हें बदलने का एक ज़िद्दी आशावाद झलकता है।